Doctrine of lapse ( हराप की नीति ) : जाने इस नीति का पुरा इतिहास मात्र 5 मिनट में
अंग्रेजी हुकूमत भारत वेपार करने आये थे लेकिन जब उनकी नज़र भारत की अताह संपति पर परी तब उनकी नियत डोल गयी और उनका मन अब भारत पर अपना आधिपत्य अस्थापित कर अधिक से अधिक धन और खनिज को अपने देश मे भेजना हो गया | शुरुआती दिनों मे वो मुगल बादशाह को टैक्स देकर वेपार करते थे लेकिन जब औरंगजेब की मृत्यु हो गई तब उसके बाद मुगल साम्राज्य में कोई भी योग्य शासक नही हुए इसी का भरपूर फायदा अंग्रेजी हुकूमत ने उठाया और उन्होंने अपना पैर भारत के गद्दी पर आजमा लिया। जैव वह अपनी पहुँच को और फैला रही थी तब उनको अस्थानिये सासको से काफी दिक्कत महसूस हो रही थी। अंग्रेजो ने तब एक योजना बनाई की भारत में राजा का पुत्र या ददक् पुत्र ही राज गद्दी पर बैठता था। चुकी राजगद्दी पर अगर कोई राज कुमार बैठता था तब उसके कंधो पर पूरे राज्य की जिमेदारी होती थी इसीलिए राजा अपने योग पुत्र को ही राज पात सोप्ता था अगर उसका पुत्र योग ना हो तो वह दतक पुत्र को गोद ले लेता था और उसे राजगद्दी सोप देता था इसी का फायदा अंग्रेज ने उठाया और उन्होंने घोषणा कर दी की राजा का असली पुत्र ही राजा बनेगा न की दतक पुत्र, अगर किसी राजा का अपना संतान नही होगा तब वह राज्य अपने आप अंग्रेज़ों के सम्राज् के अधीन आ जाए गा, इसी नियम का नाम वह लोग Doctrine of lapse दिया।
Doctrine of lapse कब लागु किया जाता था?
➡️ अगर राजा के पास राज का उत्तराधिकारी न हो।
➡️ अगर राजा राज चलाने मे असमर्थ हो ।
➡️ अगर राजा का कोई पुत्र न हो और उसका दतक पुत्र हो भी तब भी उसका राज को मिला लिया जाता था
➡️ बहुत सारे राज इस नियम पर हराप लिए गए ।
जैसे:- अवध(1856), झांसी(1853), नागपुर(1854), करोली(1855), उदयपुर(1852), सातारा(1848) इत्यादि ।
➡️ ये लार्ड डलहौजी (1848-1856) के द्वारा लागु किया गया ।
➡️ ये नियम 1857 के क्रांति के होने के कारण मे से एक है।